Ad

यूक्रेन युद्ध

गेहूं निर्यात पर रोक, फिर भी कम नहीं हो रहीं कीमतें

गेहूं निर्यात पर रोक, फिर भी कम नहीं हो रहीं कीमतें

नई दिल्ली। गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध (Wheat Export Ban - May 2022) के बावजूद भी घरेलू बाजार में गेहूं की कीमतें कम नहीं हो रहीं हैं। रोक के बाद 14 दिन में खुदरा बाजार में गेहूं की कीमत में महज 56 पैसे की गिरावट हुई है। उछलते वैश्विक दाम और गेहूं उत्पादन में कमी के चलते गेहूं की कीमतों में वृद्धि हुई है। भारत में 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। उस वैश्विक बाजार में इसका भाव 1167.2 डॉलर प्रति बशल था। 18 मई को यह बढ़कर 1284 डॉलर प्रति बशल (27.216 रूपये प्रति किलो) तक पहुंच गया। हालांकि 25 मई को इसमें फिर गिरावट हुई। और 26 मई को इसकी कीमतें घटकर 1128 डॉलर प्रति बशल हो गईं। केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया का कहना है कि वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी आ रही है। इसके अलावा भारत में गेहूं उत्पादन में गिरावट भी महंगाई का मुख्य कारण है। वैश्विक बाजार में जब तक दाम नहीं घटेंगे, तब तक घरेलू बाजार में भी गेहूं के भाव में गिरावट की संभावना कम है।

अभी कुछ महीने और महंगाई के आसार

केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध कारण आपूर्ति प्रभावित होने से वैश्विक बाजार में तेजी है। भारत को थोड़ी राहत इसलिए है कि पिछले तीन-चार सालों से गेहूं उत्पादन बेहतर होने के कारण हमारे पास गेहूं का अच्छा भंडारण बन हुआ है। फिर भी गेहूं के सस्ते होने के लिए कुछ महीने और इंतजार करना होगा।

उत्पादन कम हुआ, मांग बढ़ी

- इस साल गेहूं का उत्पादन कम हुआ है, जबकि वैश्विक स्तर पर गेहूं की मांग ज्यादा बढ़ी है। देश मे गेहूं भंडारण पेट भरने के लिए ही काफी है।

गरम तवे पर छींटे सी राहत :

तारीख - 13 मई 2022, कीमत प्रति क्वांटल - 2334, कीमत प्रति किलो - 23.34 तारीख - 26 मई 2022, कीमत प्रति क्विंटल - 2278, कीमत प्रति किलो - 22.78 सस्ता - प्रति क्विंटल 56 पैसे

ये भी पढ़ें: अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ

◆ देश में इस साल गेहूं उत्पादन में 7-8% कई कमी की आंशका है।

◆ साल 2021-22 में 10.95 करोड़ गेहूं का उत्पादन हुआ है। 

 ◆ भारत 21 मार्च 2022 तक कुल 70.30 लाख टन गेहूं निर्यात (wheat export) कर चुका है। 

 ◆ वैश्विक स्तर पर 14 साल बाद गेहूं पर महंगाई हुई है। "मौजूदा हालात के चलते गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा। दुनियाभर में अनिश्चितता बनी हुई है, अगर ऐसे में हम निर्यात शुरू कर दें तो जमाखोरी की आशंका बढ़ सकती है। इससे उन देशों को कोई लाभ नहीं होगा, जिनको अनाज की बेहद जरूरत है। हमारे इस फैसले से वैश्विक बाजार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात एक फीसदी से भी कम है।"

श्री पीयूष गोयल भारत सरकार में रेलवे मंत्री तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हैं (Shri Piyush Goyal Commerce minister)

- पीयूष गोयल, केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री (फोटो सहित)


लोकेन्द्र नरवार

 
तुर्की में अनाज संकट दूर करने के लिए यूक्रेन ने भेजी गेहूं की खेप

तुर्की में अनाज संकट दूर करने के लिए यूक्रेन ने भेजी गेहूं की खेप

नई दिल्ली। इन दिनों तुर्की (Turkey) में अनाज का भीषण संकट है। संकट के इस दौर में युक्रेन (Ukraine) ने गेहूं की एक बड़ी खेप भेजकर तुर्की की मदद की है। बता दें कि बीते माह भारत ने तुर्की को गेहूं की बड़ी खेप भेजी थी, लेकिन तुर्की ने भारत के गेहूं को सड़ा हुआ गेहूं बताकर उसे वापिस लौटा दिया था। हालांकि एक सप्ताह बाद ही तुर्की फिर से भारत से गेहूं की मांग करने लगा। भारत ने भी तुर्की को गेहूं भेजने का आश्वासन दिया। मगर इस बीच युक्रेन ने तुर्की को गेहूं की बड़ी खेप भेज दी है। तुर्की के रक्षा मंत्रालय के अनुसार यूक्रेनी बंदरगाह से अनाज कार्गो के साथ पहली शिपमेंट में तुर्की पहुंच चुका है।



ये भी पढ़ें:
बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

स्पूतनिक न्यूज एजेंसी के हवाले से दी गई खबर में राष्ट्रपति के प्रवक्ता, इब्राहिम कालिन ने कहा कि यूक्रेन से गेहूं की बड़ी खेप तुर्की आ चुकी है। उन्होंने बताया कि काला सागर के माध्यम से अनाज का निर्यात आने वाले दिनों में शुरू होगा। शीघ्र ही समुद्री अनाज परिवहन शुरू की जाएगी। जो आगामी वैश्विक खाद्य संकट में महत्वपूर्ण होगी।

यूक्रेनी संकट को कूटनीतिक रूप से हल करने का प्रयास करेगा तुर्की

- तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब इरदुगान के मुताबिक वह यूक्रेनी संकट को कूटनीतिक रूप से हल करने का प्रयास करेंगे। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में शांति बनाने के लिए राजनीतिक प्रयास किया जाएगा। शीघ्र ही इसका अच्छा समाचार मिलने की उम्मीद है। इसके लिए दोनों देशों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से बातचीत चल रही है।

अनाज संकट बनेगा रूस और यूक्रेन युद्ध थामने में मददगार

- वैश्विक स्तर पर कई देशों में अनाज का भीषण संकट है। उधर रूस और यूक्रेन युद्ध अभी तक जारी है। अनाज संकट वाले देश इन दोनों देशों में शांति बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। लेकिन देखना यह है कि क्या वाकई अनाज संकट ही रूस और यूक्रेन युद्ध को थामने में कारगर साबित होगा।



ये भी पढ़ें:
अब रूस देगा जरूरतमंद देशों को सस्ती कीमतों पर गेंहू, लेकिन पूरी करनी पड़ेगी यह शर्त

यूरोप की ब्रेडबास्केट माना जाता है यूक्रेन

- यूक्रेन गेहूं, मक्का और सूरजमुखी का बड़ा उत्पादक देश है। यूक्रेन में दुनिया का 10 फीसदी गेहूं, 12-17 फीसदी मक्का व 50 फीसदी सूरजमुखी का उत्पादन होता है। यही कारण है कि यूक्रेन को यूरोप का ब्रेडबास्केट के रूप में माना जाता है। रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते मानवीय आपदा की कगार पर हैं लोग - रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते ब्रिटेन जैसे कई देशों में रोजमर्या कई वस्तुओं की कीमत बढ़ गईं हैं। दुनियाभर में 47 मिलियन लोग मानवीय आपदा पर खड़े हैं। जिसका बड़ा कारण रूस और यूक्रेन युद्ध ही है। पश्चिम ने आरोप लगाया है कि रूस की कार्यवाइयों के कारण ही ऐसे हालात पैदा हुए हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत ने क्यों लगाया गेंहू पर प्रतिबंध, जानिए संपूर्ण व्यौरा

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत ने क्यों लगाया गेंहू पर प्रतिबंध, जानिए संपूर्ण व्यौरा

भारत ने रूस यूक्रेन के कारण गेंहू के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। दुनिया के विशेषज्ञ इसे दुनिया के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या मान रहे हैं। इस भीषण युद्ध के चलते पहले से ही पूरी दुनिया गेहूं की गंभीर परेशानी से जूझ रही है। जिसकी वजह से विश्व के विकसित और विकासशील देशों में इसके बुरे असर देखने को मिल रहे हैं। आपको बता दे रूस यूक्रेन जंग के कारण ऐसी आशंका जताई जा रही है कि दुनिया भर में महंगाई और तेजी से बढ़ेगी। इसमें पहले ईंधन और उसके बाद गेहूं सबसे ज्यादा चर्चा में है। कुछ समय पहले भारत दुनिया में गेहूं का निर्यात कर देशों की मदद करने की बातें कर रहा था लेकिन हाल ही में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत सरकार के इस फैसले की वजह से गेहूं के अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल बताया जा रहा है। लेकिन वजह कुछ भी हो भारत सरकार के इस फैसले से संपूर्ण विश्व पर एक गंभीर खतरा होने की आशंका जताई जा रही है।

गेहूं का निर्यात

क्योंकि हम सभी जानते हैं रूस और यूक्रेन दोनों गेंहू के निर्यातक देश हैं दोनों मिलकर दुनिया के लगभग एक चौथाई गेहूं की आपूर्ति को पूरा करते हैं। लेकिन भारत में गेहूं के दामों में तेजी से उछाल के बाद भारत सरकार ने यू-टर्न ले लिया है। हालांकि भारत की हिस्सेदारी गेहूं के निर्यात (wheat export) में 1 फ़ीसदी से भी कम है।

ये भी पढ़ें: गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

भारत द्वारा गेंहू का निर्यात

भारत धीरे धीरे गेहूं का एक निर्यातक देश बनता जा रहा है। भारत के पास इतना स्टॉक है कि वह अपने देश की जनता का पेट भरने के साथ-साथ एक करोड़ टन तक गेहूं का निर्यात भी कर सकता है। इस वर्ष भारत मार्च के तीसरे सप्ताह तक लगभग 70 लाख टन गेहूं का निर्यात अपने पड़ोसी देशों को कर चुका है। जिनमें बांग्लादेश, श्रीलंका और UAE जैसे कई देश भी सम्मिलित हैं। भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ गेहूं निर्यात के संबंध बनाए रखने के साथ-साथ अपने 80 करोड़ गरीबों के पेट भरने की भी चिंता है।

भारत और चीन गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक लेकिन निर्यातक नहीं

हम सभी जानते हैं कि भारत चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा गेहूं का उत्पादक देश है लेकिन दोनों देश अपनी घरेलू कुछ मांग के कारण दुनिया के शीर्ष गेहूं निर्यातकों में शामिल नहीं है। आपको बता दें कि रूस और यूक्रेन के बीच जंग की वजह से गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत में लगभग 40 फ़ीसदी तेजी आई है। इसलिए कई विकासशील देशों में इसका असर दिखाई देने के साथ ही गेहूं की बढ़ती कीमतों का विरोध भी होने लगा है।

ये भी पढ़ें: अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ
केंद्र सरकार ने इस बात की जानकारी शुक्रवार रात एक प्रेस कांफ्रेंस में दी कि भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात में तत्काल प्रबंध लगाया जा रहा है। जिसके चलते भारत में गेहूं की कीमतों के बढ़ने के साथ ही आटे की कीमत में भी उछाल देखा जा सकता है। भारत में गेहूं की कीमतें आसमान छू रही है। कुछ बाजारों में तो गेहूं 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है। जो सरकार के न्यूनतम मूल्य ₹2015 से काफी अधिक है। सरकार ने अपने बयान में कहा है कि यह कदम देश की खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और अन्य भुखमरी वाले देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उठाया गया है। भारत सरकार इस गेहूं का इस्तेमाल पड़ोसी और अन्य विकासशील देशों की खाद्य आवश्यकताएं की पूर्ति करने के लिए करेगी।
कीटनाशक दवाएं महंगी, मजबूरी में वाशिंग पाउडर छिड़काव कर रहे किसान

कीटनाशक दवाएं महंगी, मजबूरी में वाशिंग पाउडर छिड़काव कर रहे किसान

नौहझील। बढ़ती महंगाई का असर अब कीटनाशक दवाओं पर भी दिखाई देने लगा है। कीटनाशक दवाओं पर म्हंगैबक चलते किसान वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने को मजबूर हैं। इन दिनों मूंग और उड़द की फसल लहलहा रही है। लेकिन कीट-पतंगे फसल को बर्बाद कर रहे हैं। कीड़े और गिडार फसल को खा रहीं हैं। कीटनाशक दवाओं मूल्यों पर अचानक हुई वृद्धि से किसान परेशान हैं। मजबूरन किसान कीटनाशक की जगह पानी में वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर मूंग व उड़द की फसल पर छिड़काव कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें: आईपीएफटी ने बीज वाले मसाले की फसलों में ​कीट नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों के सुरक्षित विकल्प के रूप में जैव-कीटनाशक विकसित किया

गांव हसनपुर निवासी किसान ललित चौधरी व दीपू फौजदार बताते हैं कि उन्होंने अपने खेत में मूंग कि उड़द की फसल बो रखी है। फसल को कीड़े व गिडार कहा रहे हैं। कीटनाशक दवाओं के रेट अचानक बढ जाने के कारण पानी में वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर छिड़काव कर रहे हैं। हालांकि इसका असर कम ही दिखाई दे रहा है।

क्या कहते हैं दुकानदार

- विकास कीटनाशक भंडार कोलाहर के दुकानदार मनोज चौधरी ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कीटनाशक दवाओं के रेट महंगे हुए हैं। बीते दो महीने में कीटनाशक दवाओं के रेट दोगुने तक हो गए हैं। "मौसम काफी गर्म है ऐसे में फसल पर वाशिंग पाउडर के घोल का छिड़काव फसलों के लिए हानिकारक हो सकता है। किसानों को कोराजिन व मार्शल लिक्विड का छिड़काव करना चाहिए। जो सस्ता व कारगर साबित होगा।" - एसडीओ कृषि, सुबोध कुमार सिंह

ये भी पढ़ें: कीटनाशक के नुकसान पर मिलेगा किसान को मुआबजा

इन गांवों के किसान हैं प्रभावित

- हसनपुर, ईखू, मसंदगढ़ी, पालखेड़ा, रायकरनगढ़ी, भूरेखा, मरहला, नावली, सामंतागढ़ी सहित कई गांवों के किसानों की फसल कीट-पतंगों से प्रभावित हो रहीं हैं।

तीन महीने पहले की कीमत :

- एक्सल की मीरा 71 100 ML की कीमत 60 रुपए थी, जो अब 130 रुपए है। - नागार्जुना 65 रुपए कीमत थी जो अब 125 रुपए हो गई है एक एकड़ में 60 एमएल कोराजिन दवा का छिड़काव होता है। जिसकी कीमत 850 रुपए है। ------ लोकेन्द्र नरवार

सरकार ने इन व्यापारियों को दी गेंहू निर्यात करने की अनुमति

सरकार ने इन व्यापारियों को दी गेंहू निर्यात करने की अनुमति

रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच जारी जंग से ग्लोबल मार्केट में गेंहू की सप्लाई प्रभावित

नई दिल्ली। इस साल गेंहू की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के चलते भारत ने गत 14 मई को
गेंहू निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। उधर रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते ग्लोबल मार्केट में गेंहू की सप्लाई को बुरी तरह प्रभावित किया है। करीब 2 माह बाद भारत सरकार गेंहू निर्यात को मंजूरी देने जा रही है। लेकिन इसके लिए कुछ नए नियम बनाए गए हैं। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले विदेश व्यापार महानिदेशालय ने करीब 16 लाख टन गेंहू के निर्यात के लिए रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को जारी कर दिया गया है। ये सर्टिफिकेट सिर्फ उन व्यापारियों को ही दिया जाएगा, जिनके पास लेटर ऑफ क्रेडिट होगा।

13 मई से पहले जारी हो चुके हैं लेटर ऑफ क्रेडिट

- सरकार गेंहू की उस खेप के निर्यात के लिए अनुमति देने जा रही है, जिनके लिए लेटर ऑफ क्रेडिट 13 मई या उससे पहले जारी किया गया था।

ये भी पढ़ें: रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत ने क्यों लगाया गेंहू पर प्रतिबंध, जानिए संपूर्ण व्यौरा
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ी अनाज की कीमतों पर काबू पाने के लिए गेंहू की सप्लाई को बहुत बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। दोनों देश मिलकर वैश्विक गेंहू आपूर्ति का लगभग एक चौथाई हिस्सा पूरा करते हैं।

16 लाख टन गेंहू को मिली है मंजूरी

- वैध लेटर ऑफ क्रेडिट वाले निर्यातकों को अपनी खेप भेजने के लिए विदेश व्यापार महानिदेशालय के पास रजिस्ट्रेशन करना पड़ेगा। इसके बाद उन्हें गेंहू के एक्सपोर्ट के लिए मंजूरी दे दी जाएगी। विदेश व्यापार महानिदेशालय के क्षेत्रीय अधिकारी निर्यातकों को आरसी भी जारी करेंगे। अब तक 16 लाख टन गेंहू के निर्यात के लिए आरसी जारी कर दी गई है। रूस ने तुर्की के माध्यम से गेंहू का निर्यात शुरू कर दिया है। वैश्विक बाजार में अब गेंहू की कीमतें स्थिर हो सकती हैं।

ये भी पढ़ें: गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

भारत में 14 फीसदी गेहूं का उत्पादन

- भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत ने 2020 में दुनिया के कुल उत्पादन में लगभग 14 फीसदी योगदान किया था। भारत सालाना लगभग 107.59 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है। लेकिन इसका एक बड़ा भाग घरेलू खपत में जाता है। भारत में प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार और गुजरात हैं।

पिछले साल 70 लाख टन गेंहू का हुआ था निर्यात

- अन्य देशों की तुलना में भारतीय गेहूं की बेहतर मांग होने के कारण 2021-22 में भारत ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था। इसकी कीमत करीब 2.05 बिलियन अमरीकी डॉलर के आस-पास थी। पिछले वित्त वर्ष में कुल गेहूं निर्यात में से लगभग 50% शिपमेंट बांग्लादेश को भेजा जा चुका था। 2020-21 में भारतीय गेहूं का सबसे अधिक आयात करने वाले देश बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका, नेपाल, यमन और अफगानिस्तान आदि देश शामिल रहे थे। ------ लोकेन्द्र नरवार
इस खाद्य उत्पाद का बढ़ सकता है भाव प्रभावित हो सकता है घरेलु बजट

इस खाद्य उत्पाद का बढ़ सकता है भाव प्रभावित हो सकता है घरेलु बजट

यूक्रेन व रूस युद्ध की वजह से अर्थव्यवस्था बेहद प्रभावित हो रही है। दुनिया इन दिनों आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है, जो देश समृद्धशाली नहीं हैं, वह महामारी तथा ईंधन के बढ़ते मूल्यों से चिंताग्रस्त हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं समान आवश्यक खाद्य उत्पादों के भंडारण को काफी प्रभावित किया है। जिससे गेहूं के भाव में वृध्दि की संभावना है। बतादें कि रूस के विरुद्ध पश्चिमी प्रतिबंधों ने समस्त देशों हेतु व्यापार विकल्पों को कम कर दिया है। इसका सीधा प्रभाव सर्वाधिक दुर्बल लोगों पर देखने को मिल रहा है। आधुनीकरण के साथ नवीन बाजार एवं नवीन अर्थव्यवस्थाएं भी सामने आ रही हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) यूक्रेन युद्ध एवं रूस पर प्रतिबंधों की वजह से बेहद ही संकट की घड़ी का सामना कर रही है। इसी वजह से विश्व की खाद्यान आपूर्ति एवं व्यवसाय का ढांचा ध्वस्त हो चुका है। बतादें कि इसी वजह से आधारभूत उत्पादों का भी भाव तीव्रता से बढ़ रहा है, जिसमें ईंधन, भोजन एवं उर्वरक इत्यादि शामिल हैं। साथ ही, खाद्य सुरक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे में निश्चित रूप से गेंहू के भाव में वृध्दि होगी, यदि गेहूं के भाव में बढ़ोत्तरी आयी तो लोगों का घरेलू बजट खराब हो सकता है। दरअसल, यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी समस्या के घेरे में आ गयी है, जो कि पूर्व से ही अमेरिका और यूनाइडेट किंग्डम (United Kingdom) के खराब संबंधों व कोरोना महामारी जैसी चुनौतियों के कारण प्रभावित हो चुकी है।


ये भी पढ़ें:
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत ने क्यों लगाया गेंहू पर प्रतिबंध, जानिए संपूर्ण व्यौरा
हालाँकि, अब भारत ने जी20 में अपना परचम लहरा दिया है। बतादें कि भारत ३० नवंबर २०२३ तक भारत १९ सर्वाधिक धनी देशों व यूरोपीय संघ के समूह का नेतृत्व करेगा। यह सकल विश्व उत्पाद का ८५ फीसद एवं वैश्विक जनसँख्या का ६० फीसद हिस्सा है। ऐसे दौर में जब विश्व बदलाव की ओर बढ़ रहा है, विश्व के सर्वाधिक धनी एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक शक्तिशाली देशों के समूह का अध्यक्ष होने की वजह से भारत के समक्ष विभिन्न अवसरों के साथ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा।

रूस यूक्रेन युद्ध के संबंध में पीएम मोदी ने क्या कहा

भारत को काफी तात्कालिक समस्याओं से निपटना होगा उनमें यूक्रेन युद्ध को बंद करने हेतु भारत की अध्यक्षता का प्रयोग करना आवश्यक होगा। जी२० समूह के अध्यक्ष के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले संबोधन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अपनी पुनः सलाह देते हुए कहा कि आज का दौर व युग लड़ाई झगडे या युद्ध का नहीं है। बतादें कि युद्ध के कारण खाद्यान संबंधित चुनौती बढ़ गयी है।

वसुधैव कुटुम्बकम बना अस्थायी खंबा

फिलहाल, जी२० अध्यक्ष का अध्यक्ष होने के नाते भारत सही ढंग से ताकत का उपयोग कर पायेगा। शिखर सम्मेलन के साथ-साथ शेरपाओं की समानांतर बैठक की मेजबानी भारत करेगा एवं वित्त मंत्रियों एवं विश्वभर के देशों के रिजर्व बैंकों के प्रमुखों की बैठकों में हिस्सा लेगा। इसमें भारत विश्व के आर्थिक शासन में बेहतरीन परिवर्तन की बात करेगा। विश्व बैंक व आईएमएफ की भाँति ब्रिटेन वुड्स संस्थान पर भी भारत स्वयं के पद का प्रयोग कर पायेगा। भारत उन देशों को शक्ति प्रदान करेगा जो कि वैश्विक आर्थिक शासन को बेहतर बनाने के साथ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सकारात्मक परिवर्तन हेतु भी दबाव बना सकता है। अनुमानुसार अगले वर्ष चीन को पीछे छोड़ भारत विश्व का सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश बन जाएगा।
रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

आपको बतादें कि रूस ने अपने हाथों गेहूं निर्यात का नियंत्रण ले लिया है। इससे खाद्यान्न युद्ध शुरू होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी कड़ी में दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स ने रूस से गेहूं निर्यात के कारोबार से पीछे हटने की घोषणा की है। इसका मतलब यह है, कि विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस की खाद्य निर्यात पर दखल और अधिक होगी। अनुमानुसार, रूस गेहूं निर्यात को रणनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर सकता है। जरुरी नहीं कि दुश्मन को मजा चखाने के लिए अपना शारीरिक और आर्थिक बल ही उपयोग किया जाए। ना ही किसी अस्त्र शस्त्र की आवश्यकता जैसे कि आजकल बंदूक, मिसाइल, तोप, पनडुब्बी आदि आधुनिक हथियारों का उपयोग होता है। खाद्यान पदार्थों में अनाज भी एक बड़े हथियार की भूमिका अदा करता है। क्योंकि आज के समय खाद्यान्न जियोपॉलिटिक्स का बड़ा हथियार है। बीते दिनों रूस-यूक्रेन के भीषण युद्ध के बीच मॉस्को फिलहाल गेहूं को हथियार के रूप में उपयोग करने जा रहा है, जिसकी चिंगारी पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। रूस विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूर्व से ही वैश्विक खाद्यान आपूर्ति डगमगाई हुई है। रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से विगत वर्ष खाद्यान्न के भावों में वृद्धि बड़ी तीव्रता से हुई थी। फिलहाल, रूस जिस प्रकार से गेहूं निर्यात पर सरकारी नियंत्रण को अधिक तवज्जो दे रहा है, उससे हालात और अधिक गंभीर होंगे। रूस का यह प्रयास है, कि गेहूं निर्यात में केवल सरकारी कंपनियां अथवा उसकी घरेलू कंपनियां ही रहें। जिससे कि वह निर्यात को हथियार के रूप में और अधिक कारगर तरीके से उपयोग कर सके। इसी मध्य दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स निर्यात हेतु रूस में गेहूं खरीद को प्रतिबंधित करने जा रहे हैं। नतीजतन, वैश्विक खाद्यान आपूर्ति पर रूस का नियंत्रण और अधिक हो जाएगा।

गेंहू निर्यात हेतु रूस से दो इंटरनेशनल ट्रेडर्स ने कदम पीछे हटाया

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगिल इंकॉर्पोरेटेड और विटेरा ने रूस से गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। इन दोनों की विगत सीजन में रूस के कुल खाद्यान्न निर्यात में 14 फीसद की भागीदारी थी। इनके जाने से विश्व के सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस का ग्लोबल फूड सप्लाई पर नियंत्रण और पकड़ ज्यादा होगी। इनके अतिरिक्त आर्कर-डेनिएल्स मिडलैंड कंपनी भी व रूस भी अपने व्यवसाय को संकीर्ण करने के विषय में विचार-विमर्श कर रही है। लुइस ड्रेयफस भी रूस में अपनी गतिविधियों को कम करने की सोच रही है। जैसा कि हम जानते हैं, गेहूं का नया सीजन चालू हो गया है। रूस गेहूं के नए उत्पादन का निर्यात चालू कर देगा। फिलहाल, इंटरनैशनल ट्रेडर्स के पीछे हटने से रूसी गेहूं निर्यात पर सरकारी और घरेलू कंपनियों का ही वर्चश्व रहेगा। रूस द्वारा और बेहतरीन तरीके से इसका उपयोग जियोपॉलिटिक्स हेतु कर पायेगा। वह मूल्यों को भी प्रभावित करने की हालात में रहेगा। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देश रूसी गेहूं की अच्छी खासी मात्रा में खरीदारी करते हैं।

रूस करेगा गेंहू निर्यात को एक औजार के रूप में इस्तेमाल

रूस द्वारा वर्तमान में गेहूं निर्यात करने हेतु सरकार से सरकार व्यापार पर ध्यान दे रहा है। बतादें, कि सरकारी कंपनी OZK पहले ही तुर्की सहित गेहूं बेचने के संदर्भ में बहुत सारे समझौते कर चुकी है। उसने विगत वर्ष यह कहा था, कि वह इंटरनैशनल ट्रेडर्स के हस्तक्षेप से निजात चाहती है और प्रत्यक्ष रूप से देशों को निर्यात करने की दिशा में कार्य कर रही है। रूस गेहूं का शस्त्र स्वरुप उपयोग करते हुए स्वयं की इच्छानुसार चयनित देशों को ही गेंहू निर्यात करेगा। इससे फूड सप्लाई चेन तो प्रभावित होगी ही, विगत वर्ष की भाँति अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के मूल्यों में बेइंतिहान वृद्धि भी हो सकती है। ये भी पढ़े: बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

रूस ने खाद्य युद्ध को यदि हथियार बनाया तो क्या होगा

रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव से विगत वर्ष विश्वभर में गेहूं एवं आटे के भावों में तीव्रता से बढ़ोत्तरी हुई थी। बहुत सारे देश खाद्य संकट की सीमा पर पहुँच चुके हैं। तो बहुत से स्थानों पर खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो चुके हैं। विगत वर्ष भारत में भी गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा हुआ था। जिसके उपरांत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। हालाँकि, भारत अपने आप में एक बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। परंतु, जो देश खाद्यान्न की आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात हेतु आश्रित हैं। उनको काफी खाद्यान संकट से जूझना पड़ेगा। विश्व में एक बार पुनः गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा होने की संभावना भी बढ़ गई है।

पुरे विश्व को प्रभावित कर सकता है फूड वॉर

अगर हम सकारात्मक तौर पर इस बात का विश्लेषण करें तो खाद्यान्न को एक हथियार के रूप में उपयोग करना कही तक उचित तो कतई नहीं है। इससे काफी लोग भुखमरी तक के शिकार होने की संभावना होती है। वर्ष 2007 में सर्वप्रथम फूड वॉर की भयावय स्थिति देखने को मिली थी। उस वक्त सूखा, प्राकृतिक आपदा की भांति अन्य कारणों से भी पूरे विश्व में खाद्यान्न की पैदावार कम हुई थी। उस समय रूस, अर्जेंटिना जैसे प्रमुख खाद्यान्न निर्यातक देशों ने घरेलू मांग की आपूर्ति करने हेतु 2008 में कई महीनों तक खाद्यान्न के निर्यात को एक प्रकार से बिल्कुल प्रतिबंधित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप, विश्व के विभिन्न स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो गए थे। संयोगवश उस समय वैश्विक मंदी ने भी दस्तक दे दी थी। फूड वॉर को भी इसके कारणों में शम्मिलित किया जा सकता है।